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कैसे बिछड्ने की पीड़ा सहें

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जब आप किसी क़रीबी व्यक्ति को या किसी मूल्यवान वस्तु को खो देते हैं, तब होने वाली पीड़ा बहुत अधिक हो सकती है। दर्द, दुखद यादें या ऐसे सवाल, जिनके जवाब नहीं मिले हों, आपका पीछा ही नहीं छोडते हैं। आपको लग सकता है कि अब कुछ भी पहले जैसा नहीं होगा – आप कभी भी हंस नहीं पाएंगे या सम्पूर्ण नहीं हो पाएंगे। हौसला रखिए – हालांकि दर्द के बिना अफ़सोस करने का कोई तरीक़ा नहीं होता है, मगर दुखी होने के कुछ ऐसे “स्वस्थ” तरीक़े भी हो सकते हैं जिनमें आप रचनात्मक तरीक़े से जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। अपने नुकसान की वजह से जीवन को या काम को बिना ख़ुशी के जीने को मत तैयार हो जाइए, धीमे धीमे ही सही, मगर निश्चय ही आप ठीक “हो ही” जाएँगे।

[संपादन करें]चरण

[संपादन करें]दुख का सामना करना

  1. नुकसान का सामना करिए: किसी बड़े नुकसान के बाद कभी कभी हम कुछ करना चाहते हैं - कुछ भी – दर्द के एहसास को कम करने के लिए। किसी ऐसी हानिकारक आदत पाल लेने से, जैसे ड्रग्स लेने लगना, शराबी बन जाना, बहुत अधिक सोने लगना, इन्टरनेट का अत्याधिक प्रयोग करने लगना, या बिना किसी वजह के बेपरवाह हो जाना, आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है और उससे आप पीड़ा और एडिक्शन के शिकार हो सकते हैं। जब तक आप नुकसान का सामना नहीं करेंगे तब तक आपका घाव नहीं भरेगा। नुकसान से होने वाले दर्द को अनदेखा करने से, या अपने को किसी और चीज़ के नशे में डुबा देने से बस थोड़ी देर का ही आराम मिलेगा, और बाद में तो आपका दुख आपको घेर ही लेगा। अपने नुकसान का सामना करिए। रोइए या ऐसे किसी तरह से दुख मनाइए जो स्वाभाविक हो। सबसे पहले यह स्वीकार कर लीजिये कि दुख है, और तभी आप उस पर विजय पा सकते हैं।
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    • जब नुकसान की याद ताज़ा होती है तब आपके दुख को आपका पूरा ध्यान चाहिए होता है। हालांकि आपको लंबे समय तक दुखी नहीं रहना चाहिए। अपने को कुछ समय दीजिये – शायद कुछ दिन या एक सप्ताह – पूरी तरह से दुखी होने के लिए। बहुत दिनों तक विलाप करते रहने से आप अपने नुकसान के चक्कर में फंसे रह जाते हैं, अपने ऊपर की गई दया से आप पंगु हो, जाते हैं और आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं।
  2. अपने दर्द को बाहर निकलने दीजिये: आंसुओं को बहने दीजिये। कभी रोने में हिचकिचाइए मत, चाहे आप ऐसा आम तौर पर नहीं भी करते हों। याद रखिए कि पीड़ा को सहने या उसको व्यक्त करने का कोई सही या गलत तरीका नहीं होता है। महत्वपूर्ण यह है कि आप दर्द को पहचान लें और फिर उस पर काम करें। आप कैसे यह करेंगे, यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है और यह हर एक के लिए अलग-अलग हो सकता है।
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    • अपने दर्द को निकलने की जगह दीजिये। अगर आपको दुख मनाते समय कुछ करने की आवश्यकता हो ही, तब उसे “कर डालिए” (बशर्ते कि उससे आपको या किसी और को चोट न पहुँचने वाली हो।) रोना, तकिया को पीटना, लंबी दूरी तक दौड़ना, चीज़ें बाहर फेंकना, दूर तक ड्राइव पर जाना, जंगल या एकांत में ज़ोर से चिल्लाना, तथा अपनी यादों को चित्रित करना, ऐसे कुछ तरीक़े हैं जिनसे लोग अपने दर्द को बाहर निकालते हैं। सभी तरीक़े ठीक ही होते हैं।
    • ऐसा कुछ भी करने से बचिए जिससे आपको या दूसरों को नुकसान पहुँच सकता हो। बिछड़ने का मतलब यह नहीं है कि नुकसान पहुंचाया जाये या चीज़ो को और भी ख़राब किया जाये। बिछड़ना वह समय होता है जब यह सीखना चाहिए कि कैसे अपने अंदर की बचा कर रखी गई भावनाओं का सहारा लिया जाये और कैसे अपनी पीड़ा से निबटना सीखा जाये।
  3. अपनी भावनाओं को दूसरों के साथ बाँटिए: जब आप कष्ट झेल रहे हों तब ऐसे लोगों को खोज निकालना जो आपका ध्यान रख सकें, उचित है। यदि आप कोई मित्र नहीं ढूंढ पाते हैं, तब किसी संवेदनशील अनजाने व्यक्ति या साधु, सलाहकार या थेरपिस्ट का सहारा लीजिये। चाहे आपको ऐसा क्यों न लगता हो कि आप यूं ही बड़बड़ा रहे हैं, परेशान तथा अनिश्चित हों, किसी विश्वसनीय व्यक्ति से बात करना, स्वयं को, अपने द्वारा अनुभव किए जाने वाले दर्द को किसी और पर डालने की अनुमति देने का एक तरीक़ा है। बातें करने को अपनी भावनाओं को “छाँटने” के एक तरीक़े की तरह देखिये – आपके विचारों को संगत और तार्किक होने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें बस अर्थपूर्ण होना चाहिए।
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    • यदि आपको यह चिंता हो कि आपकी बातें सुन कर सामने वाला व्यक्ति परेशान हो जाएगा या उलझन में पड़ जाएगा तब उन्हें पहले से ही सावधान करके आप अपनी इस चिंता से छुटकारा पा सकते हैं। बस उनको यह पता चल जाने दीजिये कि आप दुखी, चिंतित और उलझन वगैरह में हैं, तथा आप जो भी कहेंगे हो सकता है कि उसमें से कुछ का मतलब नहीं निकल पाये, मगर आप चाहते हैं कि कोई आपकी बात सुन सके। आप पर ध्यान देने वाला मित्र या समर्थक इसका बुरा नहीं मानेगा।
  4. जो लोग संवेदनशील न हों, उनसे दूर ही रहिए: दुर्भाग्य से, वे सभी लोग, जिनसे आप दुख में बातें करेंगे, आपके लिए सहायक नहीं होंगे। जो लोग ऐसा कहें कि, “अरे इससे बाहर निकलो”, “इतना सेंसिटिव होने से नहीं चलता है”, “जब मेरे साथ ऐसा हुआ था, तब मैं तो बहुत ही जल्दी इससे बाहर आ गया था”, उन लोगों की उपेक्षा करिए। उन्हें पता ही नहीं है कि आपको कैसा लग रहा है, इसलिए उनके ऐसे उपेक्षापूर्ण कमेंट्स पर ध्यान ही मत दीजिये। उन्हें बताइये, “यदि आप मेरे इस दर्द को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, तब आपको मेरे आसपास रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको चाहे जैसा भी लग रहा हो, मुझे तो इस पीड़ा से गुज़रना ही है, इसलिए मुझे थोड़ी जगह दीजिये।“
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    • कुछ लोग जो आपकी पीड़ा की उपेक्षा कर रहे होंगे वे आपके ऐसे मित्र होंगे जिनकी नीयत अच्छी (मगर पथभ्रष्ट) होगी। जब आप फिर से मज़बूत हो जाएँ, तभी इन लोगों से फिर से संबंध बनाइये। तब तक, इनकी बेचैनी से दूर ही रहिए – आप किसी भावनात्मक घाव को भरने में जल्दी नहीं कर सकते हैं।
  5. कोई अफ़सोस मत पालिए: किसी को खोने के बाद आपको अपराधबोध हो सकता है। आप यह सोच कर बेचैन हो सकते हैं कि, “काश, मैंने एक और बार गुडबाय कह दिया होता” या “काश मैंने इस व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार किया होता।“ स्वयं को इस अपराधबोध के सागर में डूबने मत दीजिये। अतीत के बारे में बार बार सोच कर आप उसको बदल “नहीं” सकते हैं। अगर आपने अपने किसी प्रिय को खो दिया है, तो यह आपकी गलती नहीं है। यह सोचते रहने की जगह पर कि आप क्या कर “सकते” थे या आपको क्या करना “चाहिए” था, ध्यान इस पर लगाइए कि आप क्या “कर” सकते हैं – अपनी भावनाओं को प्रोसेस करिए और आगे बढ़िए।
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    • अगर किसी से जुड़ा होने के बाद आपको अपराधबोध होता है, तब ऐसे लोगों से बात करिए, जो उस व्यक्ति या उस पालतु जानवर (pet) से परिचित हों। वे लगभग सदैव ही आपको आश्वस्त कर सकेंगे कि उससे अलग होने में आपकी कोई गलती नहीं है।
  6. जिन चीज़ों से आपको अपने प्रियजन की याद आती हो उन्हें बचा कर रखिए: केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति या पालतु जानवर (pet) आपसे बिछड़ गया है, इसका यह मतलब नहीं है कि आपको सदैव उन्हें याद नहीं करते रहना चाहिए। यह जान कर सांत्वना मिल सकती है कि वह व्यक्ति या पालतु जानवर (pet) जो अब यहाँ नहीं है, उसकी दोस्ती, प्यार और निजी संबंध अभी भी बाक़ी हैं। कोई भी, कभी भी उन्हें आपसे छीन नहीं सकता है, और आपके जो संबंध उनसे रहे हैं, वे सदैव आपका हिस्सा बने रहेंगे। कुछ मेमेंटों को सदैव रखना, आपको अपने साहस, दृढ़ता तथा उज्जवल भविष्य देखने की क्षमता की याद दिलाते रहने के लिए उचित होगा।
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    • उन मेमेंटोस को राह से हटा कर, किसी ऐसी जगह संभाल कर रखिए जिनसे आपको उस व्यक्ति या पालतु जानवर (pet) की याद आती रह सके। जब भी आपको उन यादों के साकार रिमाइन्डर की आवश्यकता हो, तब उन्हें बाहर निकाला करिए। उन मेमेंटोस को यूं ही खुले में बाहर छोड़ देना कोई अच्छी बात नहीं है। लगातार इस बात की याद करते रहना कि कोई चला गया है, आगे बढ़ जाने को कठिन बना देता है।
  7. मदद लीजिये: हमारे समाज में, जो लोग भावनात्मक समस्याओं के लिए सहायता लेते हैं, उसे उनके विरुद्ध अत्यधिक हानिकारक कलंक माना जाता है। थेरपिस्ट या काउंसिलर से मिलना आपको कमज़ोर या दयनीय “नहीं” बना देता है। बल्कि, यह तो आपकी क्षमताओं का चिन्ह है। आवश्यक मदद की खोज करके आप आगे बढ्ने की अदम्य इच्छा को दिखाते हैं और अपने दुख पर विजय पाते हैं। किसी प्रोफेशनल से मिलने का समय तय करने में हिचकिचाइए मत – वर्ष 2004 में लगभग एक चौथाई अमेरिकन पिछले दो वर्षों में किसी न किसी थेरपिस्ट के पास जा चुके थे।
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[संपादन करें]ख़ुशी की ओर बढ़ना

  1. अपना ध्यान शोक से हटाइए: जिस व्यक्ति या पालतु जानवर (pet) को आपने खो दिया है उसके साथ बिताए गए अच्छे समय और उसके साथ की सर्वश्रेष्ठ यादों को याद करने का प्रयास करिए। नकारात्मक विचारों या खेद पर ध्यान केन्द्रित करने से तो जो बीत चुका है वह बदल नहीं जाएगा। उससे बस आपको और भी बुरा लगने लगेगा। आश्वस्त रहिए कि जो आपके जीवन में कभी खुशियाँ लेकर आया था वह कभी भी नहीं चाहेगा कि आप दुख में डूबे रहें। ऐसी चीज़ों को याद रखने का प्रयास करिए, जैसे कि वह व्यक्ति कैसे बातें करता था, उसकी अजीबोगरीब आदतें, उसके साथ हंसी मज़ाक में गुज़ारा हुआ समय और उस व्यक्ति ने आपको जीवन और स्वयं के बारे में जो कुछ सिखाया हो।
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    • यदि आपने कोई पालतु जानवर (pet) खो दिया हो, तब उस बढ़िया समय की याद करिए, जो आपने साथ बिताया हो, आपने जो शानदार जीवन अपने पालतु जानवर (pet) को दिया हो, और आपके पशु की वह ख़ास आदतें।
    • जब भी आपको और भी दुखी, नाराज़ या अपने ऊपर दया करने की इच्छा होने लगे, तब एक डायरी उठा लीजिये और उस खोये हुये व्यक्ति या पालतु जानवर (pet) से जुड़ी हुई जो भी अच्छी बातें आपको याद आती हों, उन्हें लिख डालिए। उदासी के पलों में, अपनी पायी हुयी ख़ुशी की यादें ताज़ा करने के लिए, आप इस डायरी को देख सकते हैं।
  2. अपना ध्यान वहाँ से हटाइए: व्यस्त रह कर और स्वयं को ऐसे कामों में लगा कर जिनमें ध्यान लगाने की आवश्यकता पड़ती हो, आप अपने आप को लगातार अपने नुकसान पर चिंतित रहने से बचा सकते हैं। इससे आपको यह एहसास करने का मौक़ा भी मिलता है कि आपकी दुनिया में अभी भी कुछ अच्छी चीज़ें बाक़ी हैं।
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    • हालांकि, काम या पढ़ाई आपको नुकसान के बारे में सोचते रहने से कुछ समय के लिए छुटकारा अवश्य दिला देते हैं, मगर केवल अपनी दिनचर्या को ही अपना ध्यान हटाने के लिए इस्तेमाल मत करिए, वरना ख़तरा यह भी हो सकता है कि आपको लगने लगे कि जीवन में काम और दुख के सिवा और कुछ भी नहीं है। अपनी पहचान फिर से ऐसे ख़ुशनुमा कामों से कराइए जिनसे आपको शांति मिलती हो। संभावनाएँ तो बहुत तरह की हैं जैसे कि बागवानी, खाना पकाना, मछली पकड़ना, फेवरिट म्यूजिक सुनना, टहलना, फोटोग्राफी, पेंटिंग, राइटिंग वगैरह। ऐसी किसी चीज़ का चयन करिए जिससे आपको शांति और ख़ुशी से कुछ पाने का एहसास मिले (ऐसी चीज़ नहीं जिसका आश्वासन प्रतिदिन के काम या पढ़ाई से हमेशा ही मिलता हो)।
    • सोशल वर्क करने के बारे में सोचिए: अपनी समस्याओं पर से ध्यान हटा कर दूसरों की समस्याओं को देखिये। वोलंटियर बनने की संभावना पर विचार करिए। अगर आपको बच्चे पसंद हों, तब सहजता और हंसी ख़ुशी से भरपूर बच्चों की मदद करके आप अपने मन की शांति पा सकते हैं।
  3. सुंदर दिनों में ख़ुशी खोजिए: दुख का एक आम लक्षण यह है कि आप अपने बाहरी जीवन की उपेक्षा करके घर पर ही रहने लगते हैं। जब आप अपने शुरुआती दुख से आगे निकल पाएँ, तब यही वह सुअवसर है जब आप अच्छे दिनों का स्वागत कर सकें। कुछ समय, टहलने में, विचार करने में, और अपने आस पास के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखने में लगाइए। कुछ ख़ास मनोभावों के पीछे भागते रहने की कोशिश मत करिए – बस सूरज की गर्माहट और दुनिया के शोर को अपने ऊपर छा जाने दीजिये। आप जो पेड़ पौधे और आर्किटेक्चर अपने आस पास देखते हैं, उनके सौन्दर्य से अचंभित हो जाइए। दुनिया की चहल पहल को यह ध्यान दिलाने दीजिये कि दुनिया कितनी सुंदर है। ज़िंदगी तो चलती ही रहती है – आपको भी उसका भाग बनना है और देर सबेर अपनी दिनचर्या पर वापस आना ही है।
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    • ऐसे कुछ ख़ास साक्ष्य भी हैं जिनसे यह सिद्ध हुआ है कि सूर्य के प्रकाश में एंटी डिप्रेस्सेंट गुण होते हैं।[१] घर से बाहर निकलने से शायद आपको भावनात्मक लीक से निकल पाने में भी सहायता मिल सकती है।
  4. जो भी आपने खोया है उसके “विचार” को फिर से पा लीजिये: जब आप किसी को खो देते हैं, तब यह तो दुर्भाग्यपूर्ण बात होती ही है कि आप फिर से उसकी भौतिक उपस्थिति का आनंद तो नहीं पा सकते हैं। मगर, इसका अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्ति या पालतु जानवर (pet) जो आपने खो दिया है दुनिया में एक विचार या चिन्ह की तरह भी नहीं रह सकता है। याद रखिए, वह व्यक्ति या पालतु जानवर (pet) जिसे आपने खो दिया है आपके विचारों, शब्दों तथा कार्यों में रहता है। जब हम ऐसा कुछ भी कहते, करते या सोचते हैं जो कि जाने वाले/वाली की यादों से प्रभावित होता है, तब वह फिर से जीवित हो जाता है।
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    • बहुत से धर्मों में यह शिक्षा दी जाती है कि जब मनुष्य के भौतिक शरीर की मृत्यु हो जाती है तब उसकी आत्मा या उसका सत्व रह जाता है। अन्य धर्म यह बताते हैं कि मनुष्य का सत्व कोई अन्य रूप ले लेता है और धरती पर बिखर जाता है। यदि आप धार्मिक हैं, तब इससे संतोष प्राप्त कर लीजिये कि जो व्यक्ति मर गया है वह अभी भी आत्मिक रूप से यहीं है।
  5. अच्छे लोगों के साथ समय बिताइए: किसी नुकसान के बाद बाहर जा कर समय बिताने के लिए स्वयं को प्रोत्साहित करना मुश्किल हो सकता है। मगर ऐसा करने से आपके मूड में बहुत सुधार हो सकता है। ऐसे मित्रों के साथ समय बिताना अच्छा होगा जो आपकी मनोभावना को तब भी समझ सकते हैं, जब कि आप शत प्रतिशत ठीक नहीं भी हुये हों। ऐसे मित्रों और परिचितों को ढूंढ निकालिए जो मज़ेदार तो हों, मगर साथ ही दयालु और संवेदनशील भी हों। वे आपको अपने सामान्य सामाजिक रोल में आने में मदद करेंगे, जिससे कि जब आप अपने दुख से बाहर आएंगे तब भी आप व्यस्त रहेंगे।
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    • किसी बड़े नुकसान के बाद पहली बार बाहर जाना थोड़ा बुझा बुझा या अटपटा केवल इसलिए लग सकता है क्योंकि आपके दोस्तों को यह चिंता बनी रहती है कि वे इस विषय पर कैसे बात शुरू करें। मगर इससे अपने को बोझिल मत हो जाने दीजिये – आपको कभी न कभी तो सामान्य सामाजिक जीवन में वापस आना ही था। लगे रहिए – हालांकि चीज़ों को पूरी तरह से “सामान्य” दिखाई पड़ने में तो हफ़्तों या महीनों लग सकते हैं, मगर दिलवाले दोस्तों के साथ समय बिताना हमेशा ही बढ़िया विचार होता है।
  6. खुश होने का ढोंग मत करिए: जब आप अपनी सामान्य दिनचर्या पर वापस आते हैं, तब आपको लगेगा कि कुछ सामाजिक या कार्य संबंधी स्थितियाँ ऐसी भी होंगी जहां पर आपको, आप जितने प्रसन्न “हैं”, उससे अधिक दिखने की आवश्यकता होगी। जहां एक ओर आपको दुख में डूबे रहने से बचने का प्रयास करना चाहिए, वहीं दूसरी ओर आपको अपने पर ख़ुशी “थोपने” से भी बचना चाहिए। “थोपी” हुयी ख़ुशी बहुत ही भद्दी लगती है – जब आप नहीं चाहते हों, तब मुस्कान ओढ़े रहना बहुत भारी होता है। ख़ुशी को काम मत बना डालिए! सामाजिक जीवन में और अपने काम काज में गंभीर रहना और गंभीर दिखना ठीक है, बशर्ते कि आप दूसरों की ख़ुशी में बाधा डालने के लिए कुछ नहीं करते हों। अपनी मुस्कुराहट को तब तक के लिए बचा कर रखिए जब तक कि आपको सच्ची ख़ुशी नहीं मिल जाती है – वह और भी मधुर हो जाएगी।
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  7. घाव भरने के लिए समय दीजिये: समय सब घावों को भर देता है। आपको भावनात्मक रूप से ठीक होने में महीनों और सालों लग सकते हैं – यह तो ठीक ही है। उचित समय पर, आपने जिस व्यक्ति को खो दिया है, एक नए उत्साह से जीवन का पूरा आनंद ले कर, उसका सम्मान करना शुरू कर दीजिये।
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    • चिंता मत करिए – जिनसे आप प्यार करते हैं, उन्हें आप कभी नहीं भूलेंगे। और न ही आप अपनी उस आंतरिक शक्ति को खो देंगे जिसने आपको खोये हुये लक्ष्यों और उपलब्धियों को फिर से ढूंढ नुकालने के लिए प्रेरित किया होगा। परिवर्तन केवल इसमें होगा कि आप अपने जीवन को कैसे दिशा देंगे – जीवन के कुछ पक्षों के प्रति आपका ध्यान बढ़ सकता है, नए मूल्य बन सकते हैं, या आपका दृष्टिकोण बदल सकता है। परंतु, यदि आप अपने घावों को भरने का समय नहीं देंगे, तब यह प्रगति संभव नहीं होगी।
    • हालांकि आपको घावों को भरने के लिए स्वयं को समुचित समय देना चाहिए, वहीं यह भी महत्वपूर्ण है कि आप याद रखें कि आपका जीवन बहुमूल्य है और आप पर ही, यहाँ पर, उसको बनाने या बिगाड़ने की ज़िम्मेदारी है। आपके जीवन का उद्देश्य ख़ुश रहना है, दुखी रहना नहीं। दुख से भागिए मत, मगर अधूरे सुधार से भी संतुष्ट मत हो जाइए। अच्छे होने की राह पर धीरे धीरे चलिये। यह आपका स्वयं पर ऋण है – “आगे बढ़ते रहिए”, चाहे जितना भी समय क्यों न लग जाये।
  8. अपनी ख़ुशी का पूर्वानुमान मत करिए: ख़ुश होने के लिए शर्मिंदा मत होइए! किसी दुख से उबरने के लिए कोई निश्चित समय नहीं होता है। अगर आप देर लगाने के स्थान पर, जल्दी ही अपने दुख से उबर सकते हैं तब “काफी दुखी नहीं होने के लिए” अपराध बोध मत पालिए। अगर आपको लगता है कि आप दुख से उबर चुके हैं, तब ‘’’शायद’’’ आप उबर ही चुके हैं। न तो दुख मनाने के लिए समय सीमाएं तय करिए, और न ही अपनी ख़ुशी को टालिए। कभी भी स्वयं को आवश्यकता से अधिक दुखी होने के लिए मजबूर मत करिए।
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[संपादन करें]सलाह

  • अगर कोई आपसे कहता है कि अब “दुख से बाहर आइये”, तब उससे बहस मत करिए। इससे तो आपको और भी बुरा लगने लगेगा, क्योंकि इससे आपको लगने लगेगा कि आप में भावनाओं को सहन करने की क्षमता दूसरों से कम है। दूसरे शब्दों में, आपको यह विश्वास होने लगेगा कि जैसे आप अपने दुख से निबट रहे हैं, उसमें कुछ समस्या है, जबकि वास्तव में होगी नहीं। यह तो बस आपकी मनोभावना है। बस इनकी तो सुनिए ही नहीं, क्योंकि उन्हें तो पता ही नहीं है कि जाने वाले प्रियजन के साथ आपका किस प्रकार का संबंध था। आप अपने तरीक़े से अपने समय में ठीक हो ही जाएँगे।
  • जब आपको हानि और दर्द की भावनाओं से निबटना हो, तब संगीत उसका एक बेहतरीन तरीक़ा हो सकता है। हालांकि आपको उदास से जोशीले गानों पर चले जाना चाहिए, अन्यथा लंबे समय तक उदास संगीत सुन कर आप अपने को और भी दुखी कर डालेंगे।
  • किसी चीज़ पर पश्चात्ताप करने में हिचकिचाइए मत, क्योंकि पश्चात्ताप तो अपने आप ही होता है, और आप उसको रोक नहीं सकते हैं। बस उसको अपने ऊपर हावी मत हो जाने दीजिये। हम जानते हैं कि जो चला गया है उससे यह कहना कि “मुझे तुमसे प्यार है” या “मुझे अफ़सोस है” एक ही बात नहीं है, मगर तब भी, तब तक कहते रहिए, जब तक कि आपको लगता नहीं है कि उन्होंने उसे सुन लिया होगा। अपराधबोध तो सदैव ही रहेगा। कहीं एकांत में, जो भी आप कहना चाहें, उसे गला फाड़ कर चिल्ला चिल्ला कर कह डालिए।
  • अपने को ब्लेम मत करिए। किसी भी चीज़ का एक्स्प्लेनेशन देने से कुछ फायदा नहीं होता है और न ही उससे आपको अच्छा ही लगेगा।
  • ”अगर-सिर्फ़” वाली भावनाओं को अपने ऊपर कब्ज़ा मत जमा लेने दीजिये। “अगर मैं बस थोड़ा और शिष्ट होता।“ “अगर मैं समय निकाल कर कुछ और बार मिलने चला गया होता।“
  • अगर रोने की आवश्यकता हो, तब अपनी भड़ास निकल जाने दीजिये। उन्हें अपने अंदर रखे रहना अच्छा नहीं है।
  • दुख अपने अनोखे क्रम में चलता है, और यह हर व्यक्ति के लिए अलग अलग होता है। न तो हर किसी का घाव एकदम से भर ही जाता है, और न ही हर कोई रोगी की तरह उदास ही रहता है।
  • याद रखिए कि हर व्यक्ति अलग अलग तरीक़े से महसूस करता है। यदि आपको एक ही हानि पर, घाव भरने में, दूसरों से अधिक कठिनाई हो रही हो, तब भी चिंतित मत हो जाइए। इससे आम तौर पर यही पता चलता है कि जाने वाले और आपमें कितनी निकटता थी। कुछ लोग रोते ही नहीं हैं, जबकि कुछ अन्य लोग महीनों तक रोना बंद ही नहीं कर पाते हैं।
  • धैर्य ही कुंजी है। जब वह स्वाभाविक रूप से हो सकता है, तब अपने पर दबाव मत डालिए।
  • अपने से प्यार करिए। इसलिए अपने को दोषी मत ठहराइए कि आप माफ़ी नहीं मांग पाये, या “मुझे तुमसे प्यार है” या “गुडबाय” नहीं कह पाये। आप अभी भी वह कह सकते हैं।

[संपादन करें]चेतावनी

  • आत्महत्या मत करिए, दुनिया जीने लायक़ है।
  • ड्रग्स या अल्कोहल जैसे पलायन से बचिए जिनसे और अधिक समस्याएँ और एडिक्शन हो सकता है।

[संपादन करें]चीजें जिनकी आपको आवश्यकता होगी

  • मेमेंटोस (फ़ोटो, डायरी, मूवीज़ वगैरह)
  • अपनी भावनाओं, कविताओं आदि के लिए एक जर्नल या डायरी।
  • भली भांति खाते रहने, व्यायाम करते रहने और बाहर निकल कर दुनिया का आनंद लेते रहने के लिए रिमाइन्डर।

[संपादन करें]स्रोत और उद्धरण


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