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कैसे उपन्यास लिखें

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उपन्यास गद्य कथा की एक काल्पनिक कृति होती है। अच्छे उपन्यासों में वास्तविकता पर प्रकाश डाला जाता है, जिससे कि पाठक पूरी तरह से काल्पनिक दुनिया में सत्य और मानवता की खोज कर सकता है। आप चाहे जिस प्रकार के भी उपन्यास को लिखने का प्रयास कर रहे हों – कमर्शियल, रोमांटिक, साइंस फ़िक्शन , युद्धकालीन महाकाव्य या पारिवारिक नाटक – आपको असीमित रचनात्मक ऊर्जा तथा प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी, जब आप उसके प्रारूप बना रहे होंगे, दोहरा रहे होंगे, तथा सम्पादन प्रक्रिया में लगे होंगे।

संपादन करेंचरण

संपादन करेंकाल्पनिक संसार की रचना

  1. प्रेरित होइए: उपन्यास लिखना एक रचनात्मक प्रक्रिया है, और आप नहीं जानते हैं कि कब कोई बढ़िया विचार आपके मन में आ जाएगा। इसलिए, आप जहां भी जाइए अपने साथ एक नोट बुक तथा कलम लेकर जाइए, ताकि विचार आने पर आप उन्हें लिख सकें। हो सकता है कि सुबह, रास्ते में आपको ऐसा कुछ सुनाई पड़ जाये, या जब आप कॉफ़ी शॉप में बैठे दिवास्वप्न देख रहे हों, तब ऐसा कुछ सूझ जाये, जिससे आप प्रेरित हो सकें। आपको पता नहीं कि आप कब प्रेरित हो जाएँगे, इसलिए, जहां भी जाइए अपनी आँखें और कान खुले रखिए।
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    • प्रेरणा के आगमन की प्रतीक्षा मत करिए। लेखन एक प्रकार की पाचन क्रिया है – यदि कुछ जाएगा नहीं, तो कुछ आयेगा भी नहीं। जैसे कि, आपको पता है कि कभी कभी विचार बिलकुल शून्य में से निकल कर आ जाते हैं, जबकि आप विचार से बिलकुल ही असम्बद्ध कुछ कर रहे होते हैं। यह तब होता है, जब आप कुछ देखते हैं, उसको अपने अवचेतन में जाने देते हैं, जहां पर उसकी प्रोसेसिंग होती है, और कभी न कभी वह आपके चेतन मन में वापस आ जाता है। कुछ मामलों में यह विचारों के लिए सबसे बड़ा संसाधन होता है – इन विचारों की आकस्मिकता वास्तव में अच्छे व्यंग को विकसित होने में, या आपकी कहानी में उत्तेजक मोड़ लाने में सहायक हो सकते हैं।
    • एक लेखक होने के कारण आपको लगातार अभिप्रेरण की आवश्यकता होती है। कभी कभी लेखकों को अपने मस्तिष्क में विचार लाने में दिक़्क़त होती है। यह समस्या सभी लेखकों की है, और इसका सबसे बढ़िया इलाज है, प्रेरणा।
    • आवश्यक नहीं कि यह कोई पुस्तक ही हो – यह कोई टीवी शो, मूवी, या किसी नुमाइश या कला वीथिका की यात्रा भी हो सकती है। प्रेरणा अनगिनत रूपों में आती है।
    • अपनी नोट बुक का उपयोग छोटे छोटे अंश, अनुच्छेद, अथवा वाक्यों को लिखने में करिए, जो बाद में एक सम्पूर्ण कहानी का भाग बन जाएँगे।
    • उन सभी कहानियों के बारे में सोचिए, जो आपने सुनी हैं – कहानियाँ जो आपकी परदादी से आई हों, वह कहानी जो आपको समाचारों से मिली हो, या बचपन की वह भूतिया कहानी, जिसे आप अभी तक भूल न पाये हों।
    • अपने बचपन के, या उसके थोड़े बाद के, उस पल को सोचिए, जो अभी तक आपसे अलग नहीं हो पाया है। वह आपके शहर में हुयी किसी महिला की रहस्यमय मृत्यु हो सकती है, आपके बूढ़े पड़ोसी का अपने पालतू जानवरों के लिए जुनून हो सकता है, या बंबई की वह यात्रा, जिसके बारे में आप आज तक सोचते ही रहते हैं। उदाहरण के लिए, बर्फ़ का वह दृश्य जो One Hundred Years Of Solitude में लिया गया है, वह लेखक के बचपन के अनुभव पर आधारित था।
    • लोग कहते हैं “जो आप जानते हैं” उसी के संबंध में लिखना चाहिए। जबकि कुछ अन्य लोगों का विश्वास है कि “जो जानने के बारे में आप नहीं जानते हैं” उस बारे में लिखिए। अपने जीवन के संबंध में ऐसा कुछ सोचिए जिसने आपको प्रेरित, परेशान, या चकित किया हो – और देखिये कि आप किस प्रकार इस विषय को एक उपन्यास के रूप में ला सकते हैं?
  2. अपनी शैली निर्धारित करिए: प्रत्येक उपन्यास स्पष्ट रूप से किसी शैली में फ़िट हो जाये, यह आवश्यक नहीं है परंतु इससे पहले कि आप अपनी कृति पर कार्य शुरू करें, यह विचार कर लेना सहायक हो सकता है कि आप क्या शैली रखना चाहेंगे, और आपके पाठक कौन होंगे। और यदि आपने अभी तक पूरी तरह से शैली का निर्धारण नहीं किया है, या एक से अधिक शैलियों पर कार्य कर रहे हैं, तब भी कुछ समस्या नहीं है – महत्त्वपूर्ण यह जान लेना है कि आप किस परंपरा पर काम करेंगे, न कि किसी विशिष्ट शैली, या श्रेणी का निर्धारण। इन विकल्पों के संबंध में सोचिए:
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    • साहित्यिक उपन्यास कला की कृतियाँ होना चाहते हैं, जिसमें गहरे थीम हों, प्रतीकात्मकता हो, तथा जटिल साहित्यिक कल्पनाएँ हों। महान उपन्यासकारों की शास्त्रीय कृतियों को पढ़िये, तथा इसके लिए “द गार्जियन” (The Guardian) में दी गई सूचियों की सहायता ली जा सकती है"100 Greatest Novels of All Time"
    • कौमर्शियल उपन्यासों का उद्देश्य पाठकों के मनोरंजन का होता है, और उनकी अनेक प्रतियाँ बिकती हैं। इनको अनेक शैलियों में विभाजित किया जा सकता है, जिसमें अन्य के साथ साइंस फ़िक्शन , रहस्य, रोमांच, फ़िक्शन, रोमांटिक कल्पनाएँ शामिल होती हैं। इन शैलियों में अनेक उपन्यास पिटे पिटाए सूत्रों का पालन करते हैं, और उनकी लंबी लंबी शृंखलाएँ लिखी जाती हैं।
    • साहित्यिक एवं कौमर्शियल उपन्यासों में ढेर सारे संबंध होते हैं। अनेक लेखक जो साइंस फ़िक्शन तथा रहस्य आदि के उतने ही जटिल और अर्थपूर्ण उपन्यासों की रचना करते हैं, जितने कि वे लेखक, जो पारंपरिक रूप से “साहित्यिक” होते हैं। केवल इसलिए कि कोई उपन्यास ख़ूब बिकता है, इसका अर्थ यह नहीं है कि वह कलात्मक कृति नहीं है (या इसका विपरीत)।
    • आप चाहे जिस शैली के उपन्यास पर भी एकाग्रचित्त होना चाहें, यदि आपने पहले से पढ़ नहीं रखे हैं, तो उस शैली के, जितने संभव हों, उतने उपन्यास पढ़ डालिए। इससे आपको, आप जिस परंपरा पर काम करने जा रहे हैं, उसकी बेहतर समझ प्राप्त होगी – तथा यह भी, कि आप कैसे उस परंपरा को और समृद्ध कर पाएंगे, या चुनौती दे पाएंगे।
    • शोध करने का (शोध के संबंध में और जानकारी के लिए नीचे देखिये) अर्थ है कि अपनी शैली या परंपरा के अन्य उपन्यासों को पढ़ना। जैसे कि, यदि आप द्वितीय विश्व युद्ध पर आधारित कोई उपन्यास फ़्रेंच दृष्टिकोण से लिखना चाहते हैं, तब इस विषय पर अन्य उपन्यास पढ़िये। आपका उपन्यास इनसे किस प्रकार भिन्न होगा?
  3. अपनी परिस्थिति का निर्धारण करिए: जब आपने किसी शैली (या शैलियों) का निर्धारण कर लिया हो, जिसके अंतर्गत आपको लिखना है, तब अपने उपन्यास के लिए परिस्थिति की कल्पना करना शुरू करिए। यह केवल उस शहर तक सीमित नहीं रहेगा, जहां पर आपके पात्र रहते हैं; आपको पूरे ब्रह्मांड की कल्पना करनी है। आप जो परिस्थिति रचेंगे, वह आपके उपन्यास का मूड तथा टोन निर्धारित करेगी, तथा उन समस्याओं पर भी प्रभाव डालेगी, जिनका सामना आपके चरित्र करेंगे। जब आप अपने द्वारा रचे जा रहे विश्व के मानदंडों का सीमांकन कर रहे हों, तब इन प्रश्नों पर विचार करिए:
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    • क्या वह मामूली तौर पर उन स्थानों पर आधारित होगी जिनसे आप वास्तविक जीवन में परिचित हैं?
    • क्या वह वर्तमान में बनाई जाएगी, या किसी अन्य काल में?
    • क्या वह धरती पर होगा या किसी काल्पनिक स्थान पर?
    • क्या वह किसी शहर या मोहल्ले पर केन्द्रित होगा या अनेक स्थानों पर फैला हुआ?
    • उसकी घटनाएँ क्या एक महीने, एक वर्ष, या दशकों में घटेंगी?
    • उसमें निराशावाद होगा या वह आशा की प्रेरणा देगी?
  4. चरित्रों की रचना करिए: आपके उपन्यास का सबसे महत्त्वपूर्ण चरित्र आपका नायक होगा, उसकी संरचना आसानी से पहचानी जाने योग्य निजी विशेषताओं तथा विचारों के पैटर्न के साथ की जानी चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि नायक सदैव पसंद किए जाने योग्य ही हो, परंतु आमतौर से, वे ऐसे होने चाहिए, जिनसे पाठक जुड़ सकें, तथा उनकी रुचि कहानी में बनी रहे। काल्पनिक कथाएँ पढ़ने का एक आनंद यह होता है कि आप उसमें स्वयं को पहचान पाते हैं, और जीवंत रूप से आप स्वयं को अपने प्रिय चरित्र के स्थान पर जीता हुआ पाते हैं।
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    • आपके नायक तथा अन्य चरित्रों को पसंद आने लायक़ होने की आवश्यकता नहीं है, परंतु उन्हें दिलचस्प अवश्य होना चाहिए। जैसे कि, ‘’लोलिता’’ का हंबर्ट हंबर्ट ऐसा चरित्र है, जो घृणित है – परंतु है दिलचस्प।
    • आपके उपन्यास में एक ही नायक हो, यह भी आवश्यक नहीं है। आप अनेक चरित्रों को ला सकते हैं, जो आपके पाठकों को, तथा एक दूसरे को सद्भावनापूर्ण ढंग से, या संघर्ष से व्यस्त रखें, और आप कहानी को विभिन्न दृष्टिकोणों से सुनाने का खिलवाड़ कर सकते हैं।
    • आपकी दुनिया में और भी चरित्र होने चाहिए। सोचिए, कि कौन आपके नायक के साथ दोस्त रहेगा, या दुश्मन।
    • जब आप शुरू करें, उसके पहले आपको यह जानने की आवश्यकता नहीं है कि कौन कौन वहाँ होंगे। जैसे जैसे आप लिखेंगे, आपको पता चलेगा कि आपका नायक तो वास्तव में, वह छोटा सा चरित्र है जिसका आपने निर्माण किया था, या आप यह पा सकते हैं कि कैसे नए नए चरित्र उन स्थानों पर निकलते चले आ रहे हैं, जहां पर आपने उनकी कभी उम्मीद भी नहीं की थी।
    • अनेक उपन्यासकार बताते हैं कि वे अपने चरित्रों को वास्तविक व्यक्तियों की तरह से सोचते हैं, स्वयं से पूछते हैं कि वह चरित्र किसी दी हुयी परिस्थिति में क्या करेगा, तथा प्रयास करते हैं कि यथा संभव वे चरित्रों के साथ “ईमानदार” रहें। आपके चरित्रों को आपके मस्तिष्क में इतनी भली भांति विकसित होना चाहिए कि जब आप उनको अपनी काल्पनिक दुनिया में इधर से उधर ले जाएँ, तो वह स्वाभाविक लगे।
  5. पटकथा की कल्पना करिए: अधिकांश उपन्यासों में, चाहे वे किसी भी शैली के हों, किसी न किसी प्रकार का संघर्ष तो होता ही है। तनाव तब तक बढ़ता है, जब तक कि समस्याएँ चरम सीमा पर न पहुँच जाएँ, और तब किसी न किसी प्रकार से उनका समाधान हो जाता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उपन्यासों में अंत हमेशा सुखद ही होता हो; इसका अधिक कारण चरित्रों को गतिविधि के लिए प्रेरित करना तथा परिवर्तन के लिए माहौल पैदा करना, तथा आपके पूरे उपन्यास के दौरान कुछ अर्थ प्रदान करना होता है।
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    • परिपूर्ण उपन्यास की पटकथा के लिए कोई बंधा बँधाया सूत्र नहीं है। हालांकि, एक पारंपरिक विधान यह है कि गतिविधियां बढ़ाते रहा जाये (कथानक में विस्तार तथा तनाव का निर्माण किया जाये), एक संघर्ष (उपन्यास की मुख्य समस्या), तथा एक समाधान (समस्या का अंतिम निष्कर्ष) परंतु यही कोई एकमात्र तरीक़ा नहीं है।
    • आप केंद्रीय संघर्ष से शुरू करके कहानी में पीछे की ओर जा सकते हैं, और ये दिखा सकते हैं कि ये क्यों महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, यदि कोई लड़की अपने पिता के अंतिम संस्कार के बाद घर लौट रही है, और पाठक को यह पता न हो कि इससे किस प्रकार तुरंत कोई महत्त्वपूर्ण संघर्ष सामने आ सकता है।
    • आपके उपन्यास को साफ़ सुथरे तरीक़े से संघर्ष का “समाधान” करने की आवश्यकता नहीं है। कुछ मामले अनसुलझे छोड़ देना भी ठीक ही है – यदि आपके पाठकों को आपका उपन्यास पसंद आता है, तो वे उन अनसुलझे सूत्रों को स्वयं सुलझाने में आनंद लेंगे (आनंद, पाठकों की कल्पना, चर्चा आदि)।
    • आपके उपन्यास को रेखीय होने की भी आवश्यकता नहीं है। वह वर्तमान में शुरू हो सकता है और फिर आगे पीछे वर्तमान तथा अतीत के बीच में आता जाता रह सकता है, या, यहाँ तक कि अतीत में शुरू होकर बीस साल आगे कूद सकता है – जो आपको “अपनी” कहानी सुनाने के लिए अच्छा लगे, वही करिए। अरेखीय उपन्यास के उदाहरण के लिए, जुलियों कोरताज़ार का उपन्यास “हॉपस्कॉच” (Hopscotch) देखिये।
    • अपने कुछ प्रिय उपन्यास पढ़िये, और पटकथा के घुमाव पर ध्यान दीजिये। देखिये, कि किस प्रकार से उपन्यास को सूत्रबद्ध किया गया है। यह और भी दिलचस्प हो जाता है जब कि उपन्यास रेखीय न हो।
  6. दृष्टिकोण निर्धारित करिए: उपन्यास आमतौर पर, अन्य पुरुष, या प्रथम पुरुष में लिखे जाते हैं, हालांकि उन्हें द्वितीय पुरुष में भी लिखा जा सकता है, या अनेक दृष्टिकोणों से भी। प्रथम पुरुष “मैं” की ध्वनि से होता है, तथा वहाँ पर चरित्र के दृष्टिकोण से बताया जाता है। द्वितीय पुरुष, जिसका प्रयोग कम होता है, पाठकों का सम्बोधन “आप” से करता है, तथा पाठकों को स्पष्ट बताता है कि वह क्या कर रहा/रही है, और अन्य पुरुष में किसी चरित्र या चार्टरों के समूह को बाह्य दृष्टिकोण से वर्णित किया जाता है।
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    • उपन्यास का पहला वाक्य लिखने से पहले आपको अपने दृष्टिकोण का निर्धारण करने की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में, पहला अध्याय लिख सकते हैं – या पहले उपन्यास का पूरा प्रारूप लिख सकते हैं – इससे पहले कि आप यह निर्धारित करें कि उपन्यास प्रथम पुरुष में अधिक अच्छा लगेगा या अन्य पुरुष में।
    • हालांकि इसका कोई पक्का नियम नहीं है कि कौन सा दृष्टिकोण किस प्रकार के उपन्यास के लिए बेहतर होगा। परंतु यदि आप कोई नैनाभिराम उपन्यास लिख रहे हों, जिसमें कि अनेकानेक चरित्र सम्मिलित हों, तब अन्य पुरुष में लिखा गया उपन्यास आपको अपने उपन्यास के सभी चरित्रों का संयोजन करने में सहायक हो सकता है।
  7. बिल्कुल शुरू से शुरू करने के संबंध में सोचिए: हालांकि, यदि आप उपन्यास लिखना चाहते हैं तो शैली, कथानक, चरित्र, तथा स्थितियों के बारे में सोचकर शुरू करना अच्छी बात है, परंतु शुरुआत में ही इन सब चीज़ों से विह्वल हो जाना उचित नहीं है। आप किसी सीधी सादी चीज़ से प्रेरित हो सकते हैं – कोई ऐतिहासिक पल, दुकान में सुना गया कोई छोटा सा बातों का टुकड़ा, या कोई ऐसी कहानी जो आपने बचपन में दादी माँ से सुनी हो। ये सब लिखना शुरू करने के लिए, तथा जो भी आपको पता है, उससे कुछ रचने के लिए पर्याप्त हैं।
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    • यदि आप अपना पहला प्रारूप लिखने से पहले ही इन सब विवरणों को लेकर चिंतित होते हैं, तब वास्तव में आप अपनी सृजनात्मकता का गला घोंट रहे होंगे।

संपादन करेंउपन्यास का प्रारूप बनाना

  1. एक रूपरेखा बनाने का विचार करिए: हर उपन्यासकार का उपन्यास प्रारम्भ करने का अपना तरीक़ा होता है। रूपरेखा बनाने से आपको अपने विचार एक जगह रखने, तथा जब आप एक मुख्य उद्देश्य, अर्थात सम्पूर्ण पुस्तक लिखने की राह में चल रहे हों, तब प्राप्त करने के लिए छोटे छोटे लक्ष्य भी मिल जाते हैं। परंतु यदि आप बिना सोचे समझे लिखते हैं, और आपके पास पूरा विवरण – या थोड़ा भी – अभी तक उपलब्ध नहीं है, तब, जब तक कि आपको वास्तव में कोई ऐसी चीज़ न मिल जाये जो आपको मोह ले, केवल अपने को प्रेरित होकर जो भी सही लगे, वही लिखते रहने दीजिये।
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    • आपकी रूपरेखा को रेखीय होने की आवश्यकता नहीं है। आप प्रत्येक चरित्र तथा उसमें आए हुये मोड़ों का संक्षिप्त विवरण तैयार कर सकते हैं, या एक वेन डाइग्राम (Venn diagram) बनाकर यह दिखा सकते हैं कि कैसे चरित्रों की कथाएँ ओवरलैप करेंगी।
    • आपकी रूपरेखा एक “गाइड” है, कोई “क़रार” नहीं। मुद्दा है कि लेखन प्रक्रिया शुरू करने के लिए, एक देखने योग्य प्रतिरूप यह जानने के लिए तैयार कर लिया जाये कि कहानी कैसे चलेगी। जब आप अपनी लेखन प्रक्रिया शुरू करेंगे, तब इसमें परिवर्तन तो आएंगे ही।
    • कभी कभी रूपरेखा तब “और भी अधिक” सहायक हो सकती है जब आपने अपने उपन्यास के एक या दो प्रारूप तैयार कर लिए हों। इससे आपको यह जानने में सहायता मिलेगी कि आपके उपन्यास की संरचना किस प्रकार की है, तथा आप यह भी जान पाएंगे कि उसमें क्या फ़िट बैठ रहा है, और क्या नहीं, या किसका विस्तार किया जाना चाहिए, या किसका संक्षेपण।
  2. लेखन के लिए ऐसी दिनचर्या चुनिये जो आपके अनुकूल हो: अपना पहला प्रारूप पूरा करने के लिए, आपको वह समय और स्थान चुनना होगा जो कि आपके लेखन के लक्ष्यों के अनुकूल हो। आप सुबह, या शाम के एक ही निश्चित समय पर लिख सकते हैं, पूरे दिन में कभी कभी थोड़े थोड़े समय के लिए लिख सकते हैं, या सप्ताह में तीन दिन लंबे लंबे समय के लिए लेखन का कार्य कर सकते हैं। आपकी दिनचर्या चाहे जो भी हो, आप जब भी प्रेरित हों, तब लिख सकते हैं – यह केवल एक मिथक है। आपको लेखन के कार्य को वास्तविक कार्य ही समझना होगा तथा एक नियमित दिनचर्या पर टिकना पड़ेगा, चाहे आपका किसी दिन लिखने का “मन हो”, या न हो।
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    • स्वयं को एक दिनचर्या में डालने के लिए लिखने का एक स्थान बनाइये। एक ऐसा शांत कोना ढूंढ लीजिये जहां आप आराम कर सकें, और जहां कोई विकर्षण न हो। एक ऐसी कुर्सी ख़रीदिए, जिसपर आपको घंटों घंटों बैठ कर लिखने में पीठ में दर्द न हो। आप पुस्तक घंटे भर में नहीं लिख डालेंगे; इसमें महीनों लगेंगे, इसलिए अपनी पीठ बचाइए।
    • आपकी दिनचर्या में यह भी शामिल होना चाहिए कि आपको अपने लिखने के नियत समय से पहले, या उसके दौरान क्या खाने या पीने की आवश्यकता है। कॉफ़ी आपको चेतन तथा जागरूक बना देती है, या इतना चिड़चिड़ा बना देती है कि आप उत्पादक ही नहीं रह जाते? क्या शानदार नाश्ता आपको ऊर्जावान बनाता है, या आपको आलस्य से भर देता है?
  3. शोध करिए: आपको कितनी शोध करनी होगी, यह इस पर निर्भर करेगा कि आप कैसा उपन्यास लिखना चाहते हैं। पूरी जानकारी रखिए, शोध करिए, और अपने उपन्यास की परिस्थितियों के बारे में जितनी भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, कर लीजिये (चरित्र की संस्कृति, स्थान, व काल से शुरुआत करिए)। जैसे कि, यदि आप क्रांतिकारी युद्ध के काल पर आधारित ऐतिहासिक उपन्यास लिख रहे हों, तब आपको उससे कहीं अधिक शोध करना पड़ेगा, जितना कि आपको किशोरों के लिए अपने स्कूल के अनुभवों पर आधारित उपन्यास को लिखने के लिए करना होगा। फिर भी, आप चाहे जो उपन्यास लिख रहे हों, आपको यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त शोध करना होगा, कि आपके उपन्यास में वर्णित घटनाएँ सही तथा विश्वसनीय हों।
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    • पुस्तकालय का उपयोग करिए: आपको जितनी भी जानकारी चाहिए, वह आपको स्थानीय पुस्तकालय में मिल सकती है, तथा पुस्तकालय लिखने के लिए बढ़िया जगहें भी होती हैं।
    • लोगों का साक्षात्कार करिए। यदि आप निश्चित नहीं हैं कि आप जिस विषय पर लिख रहे हैं, उसमें सत्यता लगती है, तब किसी ऐसे व्यक्ति को खोज निकालिए जिसे उस विषय की व्यक्तिगत जानकारी हो, तथा उससे ढेरों सवाल पूछिए।
    • शोध आपके उपन्यास की सीमा और सामाग्री को भी प्रभावित कर सकता है। जैसे जैसे आप अपने लेखन के काल और विषय के संबंध में पढ़ते जाएँगे, आपको कुछ नए विवरण मिल सकते हैं, जो कि अत्यंत आकर्षक हों – तथा जिनसे उपन्यास की पूरी दिशा ही परिवर्तित हो सकती हो।
  4. पहला प्रारूप लिखिए: जब आप तैयार हों, तब बैठिए और उपन्यास का पहला प्रारूप लिखना शुरू करिए। भाषा को परिपूर्ण बनाने की चिंता मत करिए – इस प्रारूप को आपके अलावा कोई और नहीं पढ़ेगा। अपना आकलन किए बगैर लिखते जाइए। पहले प्रारूप को दर्शनीय होने की आवश्यकता “नहीं” है – उसको तो बस केवल “किया” जाना है। रुकिए मत। भविष्य के प्रारूपों में उपन्यास का सबसे घटिया भाग ही शायद सबसे सम्मोहक बन जाये।
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    • प्रतिबद्ध हो जाइए तथा प्रतिदिन लिखिए – या जब जब लिख सकें। आपको यह समझ लेना है कि आप क्या बोझ उठाने जा रहे हैं। अनेक लेखकों पर न तो लोगों का ध्यान जाता है, और न ही लोग उन्हें पढ़ पाते हैं क्योंकि उनके आधे अधूरे उपन्यास उनके घर पर ही पड़े रहते हैं।
    • छोटे छोटे लक्ष्य निर्धारित करिए – एक अध्याय, कुछ पृष्ठ, या प्रतिदिन कुछ शब्द लिख डालिए – स्वयं को प्रेरित रखने के लिए।
    • आप दीर्घावधि लक्ष्य भी निर्धारित कर सकते हैं – मान लीजिये, कि आपने तय किया है कि उपन्यास का प्रथम प्रारूप एक वर्ष, या कहिए, कि छह महीने में पूरा कर लेंगे। तब एक “अंतिम तिथि” चुनिये और उस पर टिके रहिए।

संपादन करेंउपन्यास को दोहराना

  1. अपने उपन्यास के जितने प्रारूपों की आवश्यकता हो, उतने लिखिए: हो सकता है कि आप भाग्यशाली हों, और आपको सही स्तर पर पहुँचने से पहले केवल तीन ही प्रारूप तैयार करने पड़ें। या हो सकता है कि आपको सही जगह तक पहुँचने के लिए बीस बार लिखना पड़े। महत्वपूर्ण यह है, कि जब आपका काम हो जाये, और उसे दूसरों से साझा किया जा सके, तब ठहर कर देखा जाये – यदि आप काफ़ी पहले ही साझा करेंगे, तब तो आपकी रचनात्मकता बाधित हो जाएगी। जब आपने अपने उपन्यास के कई प्रारूप लिख लिए हों, तथा आप आगे बढ़ने को तैयार हों, तब आप सम्पादन के स्तर पर जा सकते हैं।
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    • अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने जब “ए फ़ेयरवेल टू आर्म्स” (A Farewell to Arms) का लेखन सम्पूर्ण कर लिया (39 बार पुनर्लेखन के बाद) तथा सम्पादन कर रहे थे, तब उनसे पूछा गया कि लेखन का सबसे कठिन भाग क्या था, तब उनका प्रसिद्ध उत्तर था “सही शब्द खोज पाना”।
    • जब आप अपना पहला प्रारूप लिख चुकें तब कुछ सप्ताहों के लिए, या शायद कुछ महीनों के लिए, उससे छुटकारा पा लीजिये, और फिर आराम से बैठ कर उसे ऐसे पढ़िये, जैसे कि आप उसके पाठक हों। किन भागों को और स्पष्ट करने की आवश्यकता है? कौन से भाग बहुत बड़े और उबाऊ हैं?
    • अनुभव सिद्ध नियम यह है, कि यदि आप अपने ही उपन्यास के बड़े बड़े हिस्सों को छोड़ कर पढ़ रहे हों, तब आपके पाठक भी वैसा ही करेंगे। इन बोझिल भागों को हल्का कर के, या फिर से लिख कर आप किस प्रकार अपने उपन्यास को उनके लिए और भी आकर्षक बना सकते है?
    • प्रत्येक नया प्रारूप, या संशोधन उपन्यास के किसी एक या अनेक पक्षों पर केन्द्रित हो सकता है। जैसे कि, आप एक प्रारूप ऐसा लिख सकते हैं, जिसमें कि कथावाचक पाठकों के लिए और दिलचस्प हो जाये, या एक प्रारूप ऐसा, जिसमें कि घटनाओं की परिस्थिति का विकास किया जाये, तथा एक तीसरा ऐसा, जिसमें केंद्रीय रोमांटिक भाग को और भी पुष्ट किया जाये।
    • इस प्रक्रिया को तब तक दोहराते रहिए, जब तक कि आप ऐसा प्रारूप न पा लें, जिसे कि दूसरों को दिखाने में आपको गर्व महसूस हो। आपका उपन्यास इस स्थिति तक पहुंचे, इसमें महीनों, या वर्षों लग सकते हैं; बस, स्वयं से धैर्यवान रहिए।
  2. स्व-सम्पादन का अभ्यास करिए: जब आप ऐसी स्थिति पर पहुँच जाएँ, कि आपको लगे कि आपने कोई ठोस प्रारूप तैयार कर लिया है, तब आप सम्पादन की शुरुआत कर सकते हैं। अब आप अपना ध्यान ऐसे अनुच्छेदों या वाक्यों को हटाने पर केन्द्रित कर सकते हैं, जो काम के नहीं हैं, उन भागों से छुटकारा पा सकते हैं, जो अटपटे हों, या जहां उक्तियाँ दोहराई गई हों, या केवल अपने लेखन को व्यवस्थित कर सकते हैं। पहला प्रारूप लिखने के बाद प्रत्येक वाक्य के सम्पादन की आवश्यकता नहीं है – वैसे भी, जब तक आप ठोस प्रारूप पूरा कर लेंगे, तब तक अधिकांश शब्द तो बदल ही चुके होंगे।
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    • अपने उपन्यास को छाप कर सस्वर पढ़िये। जो भी चीज़ सुनने में सही न लगे, उसे काट दीजिये या संशोधित कर दीजिये।
    • अपने लेखन से बहुत मोह न बढ़ाइए, जैसे कि, किसी अनुच्छेद विशेष से, जिससे कि कहानी आगे बढ़ ही न रही हो। स्वयं को सही निर्णय लेने की चुनौती दीजिये। आप सदैव ही इन अनुच्छेदों का उपयोग किसी और लेख में कर सकते हैं।
  3. अपनी कृति दूसरों को दिखाइए: शुरुआत किसी ऐसे व्यक्ति से करिए, जिस पर आपको पूरा भरोसा हो, ताकि आप इस भावना के आदी हो जाएँ, कि दूसरे आपकी कृतियाँ पढ़ते हैं। चूंकि, उन लोगों से, जो आपसे प्रेम करते हैं, तथा आपकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते, ईमानदारी से फ़ीडबैक प्राप्त करना कठिन होता है, इसलिए, बाहर वाले लोगों से निम्नलिखित किसी भी एक, या अनेक विधियों से उसे प्राप्त करने पर विचार करिए:
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    • लेखन कार्यशाला में शामिल हो जाइए। स्थानीय कॉलेजों तथा लेखन केन्द्रों में ऐसी काल्पनिक कार्यशालाएँ पायी जा सकती हैं। आप दूसरे लोगों के कार्य का पुनरीक्षण करेंगे, और अपने कार्य के संबंध में भी नोट्स प्राप्त करेंगे।
    • लेखन समूह की शुरुआत करिए। यदि आपको ऐसे कुछ और भी लोग पता हों, जो कि उपन्यास लिख रहे हों, तब महीने में एक बार उनसे मिलने का इंतज़ाम करिए, ताकि आप अपनी प्रगति से एक दूसरे को अवगत करा सकें, तथा सलाहें भी मांग सकें।
    • सलाहों को थोड़ा संदेह के साथ ही स्वीकार करिए। यदि कोई आपसे कहता है कि यह अध्याय अच्छा नहीं है, तब उसको अपनी मूल प्रति से निकालने से पहले किसी दूसरे से भी राय ले लीजिये।
    • यदि आप अपना अपन्यास समाप्त करने के प्रति वास्तव में प्रतिबद्ध नहीं हैं, तब एम ए या एम एफ़ ए कार्यक्रम के लिए आवेदन करने पर विचार करिए। इन कार्यक्रमों में ऐसा सहायक तथा आमंत्रक वातावरण होता है, जहां आप अपनी कृतियाँ दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं। साथ ही, कार्य की समाप्ति के लिए समय सीमा का निर्धारण करके वे आपको प्रेरित करने में सहायता भी कर सकते हैं।
  4. अपने उपन्यास को प्रकाशित करने पर विचार करिए: अनेक ऐसे उपन्यासकार, जो पहली बार लिख रहे हों, अपने प्रथम लेखन को एक प्रशिक्षण अनुभव समझते हैं, जिससे कि वे भविष्य में सशक्त लेखन कर सकें; परंतु यदि आपको अपने उपन्यास के बारे में पूर्ण विश्वास हो, तथा आप उसको किसी प्रकाशक के पास ले जाने का प्रयास करना चाहते हों, तब आप कई रास्ते चुन सकते हैं। आप पारंपरिक पुस्तक प्रकाशन गृह का चयन कर सकते हैं, या ऑनलाइन ई प्रकाशक का, या स्वप्रकाशन का।
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    • यदि आप पारंपरिक राह पर चल रहे हैं, तो अपनी पुस्तक का प्रकाशक खोजने के लिए किसी लिटररी एजेंट को ढूँढ लेना अच्छा होगा। एजेन्टों की सूची प्राप्त करने के लिए राइटर्स मार्केट में पता करिए। आपसे कहा जाएगा कि आप अपना पत्र तथा मैनुस्क्रिप्ट की संक्षिप्त प्रति जमा करें।
    • स्वयं प्रकाशित करने वाली कंपनियाँ गुणवत्ता में भिन्न भिन्न होती हैं। किसी भी कंपनी का चयन करने से पहले कुछ नमूने मांगिए, ताकि आप कागज़ की, तथा छपाई की गुणवत्ता देख सकें।
    • और यदि आप प्रकाशन नहीं चाहते हैं तो कोई समस्या नहीं है। अपने आपको बढ़िया काम करने के लिए बधाई दीजिये, और अगली रचनात्मक योजना पर काम शुरू करिए।

संपादन करेंसलाह

  • यदि आप कहानी में कहीं अटक जाएँ, तो कल्पना करिए कि कहानी का एक पात्र आपके पीछे खड़ा हुआ बता रहा है कि ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए।
  • आप जिस चीज़ के बारे में भी चाहें, या कल्पना करें (इसका जो चाहे मतलब निकालिए) लिख सकते हैं। यदि आपको साइंस फ़िक्शन पसंद है, तब शायद आपको ऐतिहासिक कृति लिखने में मज़ा नहीं आयेगा।
  • ”बिना लोगों का विचार किए, अपने संतोष के लिए लिखना अच्छा है, न कि अपने संतोष की चिंता किए बिना, लोगों के लिए लिखना।“ कहानी को आप जैसे भी लिखना चाहें, लिख डालिए। हर शैली बिकती है, और यदि आपकी कहानी भली भांति लिखी गई है, और दिलचस्प है, तो उसके लिए स्थान बन ही जाएगा।
  • ढेरों पुस्तकें पढ़िये (विशेषकर उस शैली की, जो किसी न किसी प्रकार से आपके लिए प्रासंगिक हो); उपन्यास लिखने के पहले, दौरान, तथा बाद में। इससे आपको कई प्रकार की सहायता मिलेगी।
  • ऐसे चरित्रों का निर्माण करिए, जिनके व्यक्तित्व के गुण (तथा राय), आपकी और एक दूसरे की तुलना में अलग अलग हों। कोई भी जादुई चरित्र, जो सब समस्याओं का समाधान कर सके, नहीं चाहता है, कुछ हद तक तो इसको बर्दाश्त कर लिया जाता है, परंतु प्रयास यह किया जाना चाहिए कि अलग अलग प्रकार के चरित्र सामने आयें।
  • अनेक प्रकार के नोटपैड ऐप्लीकेशन्स उपलब्ध हैं (जैसे, गूगल कीप, ऐस्टरिड टास्क) जो कि आपके स्मार्टफ़ोन/आईपॉड/टैबलेट के लिए उपयुक्त होंगे, तथा आप जहां भी हों, वहाँ पर अपने आकस्मिक विचारों को उसमें लिख सकते हैं। कुछ डिवाइसों पर तो ऑफ़िस सूट तथा वर्ड प्रोसेसर भी होते हैं, जिनसे आप चलते फिरते भी लिखने का काम कर सकते हैं।
  • चाहे आप लिख रहे हों, या नहीं, कुछ समय (या ढेरों समय) संगीत को दीजिये – विशेषकर, उन गीतों को, जिनसे कि कोई ख़ास भाव, भावना, या कहानी याद आती हो। अपने गानों के कलेक्शन में ऐसे गाने ढूंढिए, या दूसरी शैली के संगीत में भी खोज ज़ारी रखिए। ऐसे गीतों की एक लिस्ट बना लीजिये जो आपकी कहानी या उपन्यास के लिए उपयुक्त हों, उसी प्रकार से जैसे किसी मूवी के लिए साउंडट्रैक बनाया जाता है। इससे आपको अपने प्रारूप के उन भागों में भावनाएँ जोड़ने का विचार मिलेगा, जो आपको नीरस या भावशून्य लग रहे हों। या आप प्रयास कर सकते हैं कि किसी दृश्य को, या अध्याय को, उन भावनाओं के आधार पर लिखिए, जो किसी विशेष गीत को सुनने के बाद आती हों।
  • थोड़े समय बाद आपको पता चलेगा कि जो कहानी आप लिख रहे हैं, क्या वास्तव में वह आपका ध्यान और कल्पना को पकड़ पाती है। यदि आपको ऐसा नहीं लगता है, तब विचार को विकसित करते रहिए और कोशिश करते रहिए। कभी कभी जब आप लिख रहे हों, तब बीच बीच में संगीत सुनते रहना मददगार हो सकता है। सही प्रकार के गाने आपको विभिन्न दृश्यों तथा अध्यायों के बारे में नए विचार दे सकते हैं, और यह भी, कि आपके चरित्र उस ऐडवेंचर के समय क्या महसूस कर रहे होंगे।
  • एक डायरी या जर्नल लिखना शुरू करिए, और ख़ूब पढ़िये, जिससे आपकी कुशलता बढ़ेगी। याद रखिए, कि यदि आप कुछ बदलना चाहते हैं, तो उसे बदल सकते हैं। आपका उपन्यास मध्य एशिया से शुरू होकर, स्कूल की परेशानियों तक पहुँच सकता है। यह तब होता है, जब आप अपनी पुस्तक कहीं बीच की घटनाओं से शुरू करते हैं। इसलिए, लिखने से पहले ध्यान रखिए कि आप चीज़ों के बारे में सचमुच में सोचें।
  • आप चाहे कितना भी रचनात्मक क्यों न महसूस करें, कम से कम एक पृष्ठ प्रतिदिन अवश्य लिखिए।

संपादन करेंचेतावनी

  • जब आप उपन्यास लिख रहे हों, तब आपको फ़ीडबैक के बारे में बहुत संवेदनशील नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि जब आप उसे प्रकाशित करने को कहें, तब वह अस्वीकार कर दिया जाये, या इससे भी बुरा यह हो सकता है कि आप ही जब उसको फिर से पढ़ें, तो पाएँ कि वह बहुत ही बुरा है, और उसे छोड़ दें। यदि आपका कोई पाठक कुछ परिवर्तन के लिए फ़ीडबैक देता है, उसपर विचार करिए, परंतु अपनी कहानी यूं ही मत बदल दीजिये। यह जान लीजिये, कि वह ऐसी कोई चीज़ हो, जिसे पुस्तक की भलाई के लिए आप स्वयं भी बदलना चाहते हों। साथ ही यह भी याद रखिए कि केवल एक व्यक्ति किसी चीज़ को पसंद नहीं करता है, तो उसका अर्थ यह नहीं है कि कोई भी नहीं करेगा, इसलिए बेहतर होगा कि आप कई आलोचकों की बात सुनें, और तब यह निर्णय लें कि क्या कोई चीज़ इतनी अच्छी नहीं है, जितनी आपने सोची थी।

संपादन करेंस्रोत और उद्धरण

  • How to Write a Damn Good Novel and How to Write a Damn Good Novel II by James N. Frey
  • What If? by Pamela Painter and Anne Bernays
  • How to Write Best Selling Fiction by Dean Koontz
  • Writing Down the Bones by Natalie Goldberg
  • The Power of Myth by Joseph Campbell
  • How I Write by Janet Evanovich

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